रिश्तों के दबाव से निकलकर सुनंदा ने बनाई अपनी पहचान

सुनंदा की पहचान  part-2

आज सुनंदा जुलम के पिंजरे से आजाद हो रही थी माता पिता के साथ वह अपने आपको सुरक्षित महसूस कर रही थी सुनंदा के माता-पिता उसे अपने सीने से लगाए उसे अपने घर पर वापस लेकर जा रहे थे और साथ में ही  सुनंदा के माता पिता उसकी आगे की जिंदगी  बारे में भी सोच रहे थे। सुनंदा के माता-पिता ने सुनंदा को समझाया कि उसके साथ जो भी हुआ है वह एक बुरा सपना समझकर भूल जाए और आगे की जिंदगी के बारे में सोचें लेकिन सुनंदा के लिए अभी इतना आसान नहीं था जो भी सुनंदा के साथ हुआ था उसने छोटी सुनंदा पर बहुत बुरा असर डाला था और अभी उससे बाहर निकल पाना सुनंदा के लिए आसान नहीं था इसके लिए उसको काफी समय चाहिए था।




अब सुनंदा पूरी तरह से जब अपने अतीत से बाहर निकलने की कोशिश कर रही थी तो सुनंदा को मायके में अपने आस पड़ोस की बातें भी सुननी पड़ रही थी जो उसकी मां बाप से कह रहे थे कि लड़की को आप यहां पर क्यों लेकर आए इसके असली जगह तो इसके ससुराल में ही है अच्छी बुरी जो भी थी इसकी किस्मत थी लड़की अपने ससुराल घर में ही अच्छी लगती है, जब लड़की को एक बार विदा कर देते हैं तो उसे वापिस मायके नहीं लाते लेकिन सुनंदा के मां-बाप लोगों की बातों की और बिल्कुल भी ध्यान नहीं देते और सुनंदा को भी वह यही समझाते कि तुम्हें इनकी और बिल्कुल भी ध्यान नहीं देना है और अपनी आगे की जिंदगी के बारे में सोचना है।


लोगों का behavior सुनंदा की तरफ से बिल्कुल बदल गया था  वह सुनंदा की बातों पर बिल्कुल भी ध्यान नहीं देते थे उसे इग्नोर करने लगे थे लोगों का ऐसा बिहेवियर सुनंदा को दुखी करता था वह बहुत दुखी हो जाती थी रिश्तेदार भी उसके माता-पिता से नाराज थे कि वह सूनंदा को वापिस क्यों लेकर आए । रिश्तेदारों में भी उनके घर आना बंद कर दिया था इन सबके चलते जब सुनंदा अपने मां-बाप को दुखी होते देखती तो वह सह नहीं पाती, वह सोचती की यह सब लोग उसकी जिंदगी के दुश्मन बन गए हैं एक औरत भी एक औरत का दर्द नहीं समझ रहे और उसे उस नर्क में देखकर ही खुश है, तो  उन्होंने क्या करना है ऐसे रिश्तेदारों का और ऐसे लोगों का उन्हें ऐसे रिश्तेदारों का साथ नहीं चाहिए उस दिन से उसने अपने आप से जे वादा किया की हमें ऐसे रिश्तेदारों और लोगों का साथ नहीं चाहिए यो हमारी इस दुख की घड़ी में भी हमारे साथ नहीं है  , सुनंदा ने अपने आप से यह वादा किया कि वह हमेशा खुद के साथ ही खड़ी रहेगी और खुद के लिए जिए गी अगर मुझको जे जिंदगी मिली है तो मैं इसको बिल्कुल भी व्यर्थ नहीं जाने दूंगी ऐसे मतलबी लोगों के बारे में सोच कर तो अपनी जिंदगी को बिल्कुल भी खराब नहीं करूंगी।



अब सुनंदा ने सोच लिया था कि उसे लाइफ में कुछ करना है अपने मां-बाप के लिए कुछ करना है अपने लिए कुछ करना है मैं ऐसे लोगों की बिल्कुल भी परवाह नहीं करनी , उसने परवाह करना छोड़ दिया था उसने दुखी होना छोड़ दिया था आज वह खुद के साथ खड़ी थी अपने मां-बाप के साथ खड़ी थी और आगे बढ़ने की कोशिश कर रही थी अब यह छोटी सी दुनिया ही उसकी दुनिया थी  अब वह सोचने लगी थी कि उसने लाइफ में क्या करना है और अपने कदम को एक-एक करके आगे बढ़ाने लगी थी सबसे पहले उसने कपड़ों को स्टिचिंग करने का काम शुरू किया और मेहनत करने लगी। धीरे-धीरे उसको काम  आने लगा और वह पैसे कमाने लगी। इस सबके चलते हुए बीच में सुनंदा के पिता बीमार रहने लगे । घर की जो भी कमाई थी वह अब सुनंदा की पिता की दवाइयों पर खर्च होने लगी थी उसके इलाज पर खर्च होने लगी थी। पैसे कम पड़ने लगे थे और पैसे की कमी के चलते सुनंदा के पिता ने दम तोड़ दिया इस घटना ने सुनंदा को अंदर से हिलाकर रख दिया , उसने सोचा पैसे की कमी के चलते ही आज उसके पिता उसके साथ नहीं है वह अपनी जिंदगी में इतना पैसा कमाए गी की जरूरत पड़ने पर काम आ सके।

अब सुनंदा ने कुश करना था इस के लिये वह शहर में जाना। चाहती थी । वह जाकर अपनी पहचान बनाना चाहती थी ।  जब सुनंदा ने अपनी यह इच्छा अपनी मा को बताई तो उस की मा ने मना कर दिया क्यूंकि उसे डर था कि    इतनी दूर जाकर वह सब कुछ कैसे करेगी और  यहां पर  लोग और बाते बनाएंगे। लेकिन सुनंदा ने अपनी मां को समझाया कि यहां भी उनकी जिंदगी कोनसी आसान है ।मेहनत तो हमे कहीं भी करनी पड़ेगी अब मुझे किसी पर depend नहीं रहना । मुझे अपनी जिंदगी को खुद संवारना है ।मुझे किसी की परवाह नहीं है । इन लोगो ने हमे दुःख के सिवाय कया दिया है। सुनंदा ने अपनी मां को समझाया कि अगर वह यहां पर और रही तो वह एक दिन पागल हो जाएगी कहीं गुस्से में आकर वह खुद के साथ कुछ करना ले मुझे यहां से निकलना है खुद के लिए कुछ करना है मुझ पर विश्वास करो मां तुम्हारी बेटी कभी हार नहीं मानेगी और कभी गलत राह पर नहीं चलेगी।


अब बेटी के ज्यादा कहने पर उसकी मां मान गई । अब सुनंदा  मुंबई के लिए तैयारी करने लगी, वह अपने सपनों को बुलंद करने लगी उसके अंदर एक जज्बा भरा हुआ था कुछ कर दिखाने का सुनंदा ने पूरी तरह अपनी हिम्मत को बांधना शुरू किया और आगे बढ़ने लगी मुंबई में पहुंच चुकी थी सुनंदा अब यहां उसकी नई जिंदगी की शुरुआत थी। दुनियादारी की समझ तो सुनंदा को पहले ही आ चुकी थी अब जो भी करना था सुनंदा ने अपने बलबूते पर करना था। सुनंदा ने अपनी मां को विश्वास दिलाया था कि जब वह काम और घर ढूंढ लेगी तो वह उनको भी अपने साथ यहां मुंबई ले आएगी।  सुनंदा की मां के दूर के रिश्तेदार मुंबई में थे  यहां पर सुनंदा उनके पास रहने लगी ।वहां पर सुनंदा की मां के मामा मामी रहते थे । उन्हों ने सुनंदा का साथ दिया उसे mantally suport किया । 





सुनंदा ने पहले वहां के हालातों को समझा ओर खुद को उन हालातों मैं डालने के लिए त्यार किया।  सुनंदा ने वहा कड़ी चावल का छोटा सा ठेला लगाया ओर मिहनत करने लगी । सुबह समह पर उठती सुनंदा खुद को मोटिवेट करती और जी जान से अपने काम मैं लग जाती। हलातों  ने सुनंदा को एक शेरनी बना दिया था ।एक शेरनी की तरह उसने वहां अपनी जगह बनानी शुरू करदी उसने अपना पूरा ध्यान सिर्फ अपने काम को दिया उसने खुद को इतना busy kar लिया था कि फालतू बातों कि और वह बिल्कुल ध्यान नहीं देती थी ।  काफी लोग धीरे धीरे  उसके ठेले में आने लगे ।सुनंदा ने अपने खाने के स्वाद को इतना मेहका दिया कि बड़े बड़े बिजनेस मैन भी उसके खाने को ऑफिस mien मंगवाने लगे सुनंदा ने अपने खाने की variety को और बढ़ाया।




इसके बाद सुनंदा ने अपना डाबा खोला ओर ढाबे मे दो worker रखे। सुनंदा का काम ओर बढने लगा ।अब सुनंदा इस लायक हो गई थी की वह अपनी मा को अपने पास बुला सके । सुनंदा अब किराए के घर में रहने लगी थी।जब उसकी मां उसके पास आई तो उसने सुनंदा के face पर पहले वाली चमक देखी confidence से पुरी तरह से भरपुर थी ।  उसने मा को गले लगाया ओर मा के साथ नई जिंदगी की शुरुआत करने लगी। सुनंदा को मानो सारी जिंदगी की खुशीया मिल गई हो, अब मां का  साथ भी  था । अब सुनंदा का business ओर भी बढ़ने लगा था । सुनंदा को पैसे की  कोई कमी नही थी। अब अपनी मा के नाम पर सुनंदा ने एक hotle खोल लिया था ओर इसके बाद उसने अपना घर भी  खरीद लिया था । अब रिश्तों की कोई कमी नहीं थी सुनंदा को । लेकिन उसनेे यह मुकाम आपने दम पर हासिल किया था  वह इन रिशतो से दुर    अपनी मा के साथ बहुत खुश थी  । अब वही रिश्तेदार ओर पड़ोसी जो कभी सुनंदा को ताने मारते थे वह सुनंदा की तारीफें करते नही थक रहे थे।







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